भाजपा की राष्ट्रसेवा ने हर दिल को छुआ
राष्ट्रसेवा और जनकल्याण के संकल्प के साथ 42 साल पहले भाजपा का बीजारोहण हुआ। समय व संघर्ष की धूप छांव को सहते हुए भाजपा का पौधा भारतीय राजनीति का सबसे अहम फलदार वृक्ष बन गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार ने राष्ट्रवाद को समर्पित विकास की राजनीति के लिए सदैव मन मस्तिष्क को ऊर्जा दी। भाजपा का हरेक कार्यकर्ता घर परिवार की जिम्मेदारियों को संभालते हुए खुद को राष्ट्रसेवा का त्यागी सिपाही बना बैठा। हर अच्छे व कालजयी कार्यों का सफर संघर्षपथ से होकर ही गुजरता है। अनचाही चुनौतियां राह में कांटा बनती है। कई अवरोध सामने मिलते या लाये जाते रहते हैं। निराश कर देनेवाली स्थितियां भी बनती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समान भाजपा को भी देश में अवरोधक विचारों की राजनीति का दंश झेलना पड़ा। बदनाम करने के चक्रव्यूह भी रचे जाते रहे। सांप्रदायिक ताकतों ने संघ व भाजपा को ही सांप्रदायिक ठहराने का अभियान सा चला रखा था। लेकिन हार में न जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं के भाव ने भाजपा का उत्साह कायम रखा। अब भाजपा के अच्छे दिन आए हैं। हालत ये है कि भाजपा की संगठन क्षमता व लोकप्रियता के मामले में अन्य दल मीलों दूर तक भी नजर नहीं आते हैं। देश ही नहीं दुनिया में भाजपा सबसे अधिक सदस्य संख्या वाला राजनीतिक दल बना है। भाजपा की राष्ट्रसेवा ने हर दिल को छुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक बोलबाला सारी दुनिया में है। भाजपा को इस स्थिति में पहुंचाने के लिए कई दिग्गज नेताओं के आरंभिक से लेकर जीवन पर्यंत दिए गए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
1950 में देश में लोकतंत्र की स्थापना होने के एक साल बाद यानी 1951 को श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ का गठन किया। लक्ष्य साफ था-लोकतंत्र को मजबूती देना। लेकिन परिवारवादी राजनीति ने जनसंघ की राह में कांटे बिछाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। जनसंघ को रोकने लोकतंत्र का गला दबाने तक का प्रयास किये जाते रहा। आपातकाल का वह दौर देश दुनिया कभी नहीं भुलेगा जब भारतीय लोकतंत्र का सरेआम गला घोंट दिया गया था। तब भारतीय राजनीति में नई क्रांति के उदघोष के साथ जनता पार्टी का उदय हुआ। साल 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ। लोकसभा की 295 सीटें जीतकर जनता पार्टी ने देश की सत्ता संभाली। लेकिन वैचारिक समन्वय में दरार व अन्य राजनीतिक षड़यंत्रों के कारण जनता पार्टी के नेतृत्व की सरकार 30 माह में ही सत्ता से बाहर हो गई। उसके बाद श्रद्धेय अटलबिहारी वाजपेयी व भारतीय राजनीति के लोहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी का राजनीतिक नेतृत्व मुखर होकर सामने आया। श्यामाप्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पंडित बच्छराज व्यास के विचारों व नीतियों के अनुरुप नया राजनीतिक दल बनानेका संकल्प साकार हुआ। 6 अप्रैल 1980 को अटलबिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी ने दिल्ली में भाजपा की स्थापना की।
वाजपेयी,भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष बनें। वे 1986 तक इस पद पर बने रहे। 1984 में भाजपा ने पूरी ताकत के साथ लोकसभा चुनाव में भागीदारी दर्ज की थी। मत प्रतिशतांक के हिसाब से वह देश में दूसरे स्थान की राजनीतिक पार्टी बनी थी। लेकिन उस चुनाव में भाजपा के दो उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की घटना ने देश को भावुक किया था। उस भावनात्मक लहर का लाभ कांग्रेस ने उठाया। भाजपा ने अपना राजनीतिक कदम आगे बढ़ाने के लिए आत्ममंथन किया। 1986 में लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा का नेतृत्व संभाला। यह वह दौर था जब भाजपा को गठबंधन की राजनीति के नए प्रयोगों का भी अनुभव मिला। 1989 में अटल-आडवाणी ने संगठन मजबूत करने का अभियान चलाया। उस दौरान हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 85 सीटें जीती। भाजपा के सहयोग से जनता दल के विश्वनाथप्रताप सिंह प्रधानमंत्री चुने गए। गठबंधन की राजनीति में रहकर भी भाजपा ने अपने विचारों व उसूलों से समझौता नहीं किया। जल्द ही जनता दल का साथ छूट गया। भाजपा जनमानस की भावना के अनुरुप अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के आंदोलन में कूद पड़ी। अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनाने के आंदोलन के तहत भाजपा ने सोमनाथ
से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली। 1990 में उस रथयात्रा का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी ने किया। नरेंद्र मोदी रथ के सारथी बने हुए थे। रामलला हम आयेंगे,मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा देश में गूंजा। 1991 के आम चुनाव में भाजपा ने 120 सीटें जीती। राजनीतिक दल के तौर पर भाजपा की भूमिका बुलंद होने लगी। लेकिन उसे सत्ता से दूर ही रहना पड़ा। उसी साल मुरली मनोहर जोशी भाजपा के तीसरे अध्यक्ष चुने गए। 1995 आने तक पार्टी का हर राज्यों में विस्तार हो गया। लोकसभा ही नहीं विधानसभा में भी भाजपा का प्रभाव बढ़ने लगा। भाजपा की रामराज्य की संकल्पना पर जनता के विश्वास व मतों की आहुति मिलती रही। 1996 में लोकसभा की 161 सीटें जितने के बाद अटलबिहारी वाजपेयी भाजपा गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन वह सरकार 13 दिन ही चल पायी। दोबारा चुनाव हुए। वाजपेयी ही प्रधानमंत्री बने। लेकिन वह सरकार भी 13 माह ही चल पायी। उसके बाद 1999 में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अर्थात एनडीए ने 303 सीटें जीती। वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी के नेतृत्व की वह सरकार राष्ट्रसेवा व जनकल्याण की राजनीति का नया आदर्श पेश कर गई। भाजपा की छवि खराब करने के षड़यंत्रों को भी करारा जवाब मिला। देश में हर जाति धर्म व समाज के लोगों के हित की राजनीति का नया दौर शुरु हुआ। हालांकि कांग्रेस का षड़यंत्र बाद मेंलौटने का प्रयास किया लेकिन वह विफल रही। राज्यों में भी भाजपा को रोकने के प्रयास होते रहे। लेकिन 2008 में देश के दक्षिणी क्षेत्र कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी। गुजरात, मध्यप्रदेश सहित अन्य कुछ राज्यों में भाजपा के नेतृत्व की सरकार जनता का विश्वास जीतती रही। फिर वह दौर आया जिसने भारतीय राजनीति का परिदृश्य ही बदल दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 282 सीटें जीतकर अपने बल पर ही बहुमत पा लिया। भाजपा के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। भाजपा का संगठन और भी अधिक बुलंद होता रहा।
2019 में नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री चुने गए। भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारु लक्ष्मण, जन कृष्णामूर्ति, वेंकैया नायडू, राजनाथसिंह, नितीन गडकरी, अमित शाह व जगतप्रसाद नड्डा का सक्षम नेतृत्व भी मिला। युवा, महिला, बुजुर्ग नागरिकों के अलावा जरुरतमंद वर्ग के लोगों के लिए भाजपा अभिभावक की भूमिका में आ गई। सत्ता के साथ समाजसेवा के कार्य में भाजपा के योगदान को हर वर्ग के लोग न केवल सराहते हैं बल्कि दिल से नमन भी करते हैं। सबका साथ-सबका विश्वास-सबका विकास का नारे को चरितार्थ बनाने के उद्देश्य से भाजपा महानगर,जिल्हा,मंडल,प्रभाग से बूथ के हर मतदाता तक विभिन्न सामाजिक एवं पार्टी के अनेक छोटे बड़े कार्यक्रमों के जरिए निरंतर पंहुच रही हैं जिससे नागरिकों में भाजपा के प्रति भाव विभोर संवेदना बन रही है!6 अप्रैल स्थापना दिन पर कार्यकर्ताओ के अलावा सभी को दिल से मंगलमय शुभकामनाएं
चंदन गोस्वामी भाजपा प्रवक्ता पैनलिस्ट भाजपा महाराष्ट्र
धन्यवाद
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